Wednesday, October 4, 2023
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कांग्रेस के प्रति कोई ममता नहीं

शंकर जालान
कहावत प्रचलित है-‘गुड़ खाए, लेकिन गुलगुले से परहेज’। राहुल गांधी और राष्ट्रीय कांग्रेस को लेकर इन दिनों कुछ ऐसा ही चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दिए गए बयान के बाद राहुल गांधी की लोक सभा की सदस्यता रद्द कर दी गई, इसे लेकर कांग्रेस समेत तमाम गैर-भाजपाई दल भले ही मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए राहुल के साथ खड़े दिख रहे हों, बावजूद इसके ज्यादातर क्षेत्रीय दलों विशेषकर तृणमूल कांग्रेस को आगामी लोक सभा चुनाव में कांग्रेस का साथ मंजूर नहीं है।

ऐसे में लाख टके का सवाल है कि इस तरह के बिखराव के बीच क्या 2024 में भाजपा को परास्त किया जा सकेगा।
कांग्रेस को अलग रखकर गठबंधन की जो सुगबुगाहट शुरू हुई है, क्या वह साकार हो पाएगी? देश का अगला प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहीं अग्निकन्या के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी क्या सचमुच में ऐसा कर पाएंगी? राहुल का समर्थन, लेकिन कांग्रेस को दरकिनार कर तमाम राजनीतिक दल विशेषकर ममता अपनी राजनीति में सफल हो पाएंगी? कभी अकेले चुनाव लडऩे, अभी भाजपा और कांग्रेस से अलग मोर्चा बनाने जैसी घोषणाओं के पीछे आखिर, ममता की क्या मजबूरी है, या ममता बार-बार और इतनी जल्दी-जल्दी बयान क्यों पलट रही हैं।

इसे लेकर जहां राजनीति के पंडित माथापच्ची कर रहे हैं, वहीं भाजपा राहत की सांस ले रही है क्योंकि भाजपा के केंद्रीय नेताओं या कहें कि रणनीतिकारों को भली-भांति ज्ञात है कि विपक्ष विशेषकर ममता जितना रंग बदलेेंगी, भाजपा के लिए 2024 की राह उतनी ही सहज होगी। बताते चलें कि जिस मुद्दे पर राहुल को लोक सभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है, उसी तरह के मुद्दे को उछाल कर तृणमूल कांग्रेस अब प्रधानमंत्री मोदी को न केवल कठघरे में खड़ा करना चाहती है, बल्कि उनकी (प्रधानमंत्री) की सदस्यता रद्द करने की मांग भी कर रही है। तृणमूल का तर्क है कि जब प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक या हास्यास्पद शब्द बोलने पर राहुल को सजा सुनाई जा सकती है, तो फिर ममता बनर्जी के लिए ‘दीदी-ओ-दीदी’ जैसी व्यंग्यात्मक टिप्पणी के लिए प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को क्यूं नहीं ?

पच्चीस मार्च के पहले तक ममता कहती थीं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी ‘टीआरपी’ हैं, लेकिन अदालत ने जैसे ही राहुल गांधी खिलाफ फैसला सुनाया, ममता एकाएक राहुल के पक्ष में बोलने और केंद्र सरकार खासकर नरेन्द्र मोदी को घेरने लगीं। सवाल उठ रहा है कि ममता ने अचानक पलटी क्यों मारी? क्या सचमुच में ममता राहुल के साथ खड़ी हैं? अगर हां, तो फिर ममता को उस कांग्रेस से परहेज क्यों है, जिसने उन्हें पहली बार सांसद और केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर प्रदान किया था? या फिर क्या ममता राहुल के बहाने 2024 की गोटी सजाने में लगी हैं। जानकारों के एक पक्ष का मत है कि राहुल का मुद्दा उछाल कर ममता बताने की कोशिश कर रही हैं कि मोदी सरकार के इशारे पर विपक्षी दलों के नेताओं के साथ लगातार गलत हो रहा है। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि ममता के सामने फिलहाल विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनने का लक्ष्य नहीं है, बल्कि अपने घर यानी पश्चिम बंगाल को बचाना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

कहना गलत नहीं होगा कि अगले आम चुनाव में सूबे में तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत दांव पर होगी और इसकी वजह राज्य में भाजपा का बढ़ता जनाधार तो है ही, साथ ही कांग्रेस और वाम मोर्चा की बढ़ती लोकप्रियता भी है। सागरदिघी उपचुनाव में दोनों (कांग्रेस और वाम मोर्चा) ने तृणमूल कांग्रेस को पटखनी दी है, शायद इसीलिए ममता राहुल के साथ तो जरूर दिख रही हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ बिल्कुल नहीं। राहुल की संसद की सदस्यता रद्द किए जाने के फैसले के बाद विपक्ष के कई नेता राहुल गांधी के समर्थन में उतरे तो भाजपा के नेताओं ने कहा कि सब कुछ कानून के मुताबिक हुआ है। कहना गलत नहीं होगा कि ममता ने आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस को सिरे से खारिज करना शुरू कर दिया है।

ममता बनर्जी देश के कई नेताओं के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे को मजबूत बनाने के लिए काम कर रही हैं। इस क्रम में उन्होंने हाल में समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव से भी मुलाकात की थी। सपा प्रमुख ने आने वाले दिनों में विपक्षी गठबंधन के आकार लेने का भरोसा जताते हुए कहा कि 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ लड़ाई में क्षेत्रीय पार्टयिां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। हालांकि, इस प्रस्तावित विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस की भूमिका पर अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस को तय करना है कि वह कहां रहे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, और हम क्षेत्रीय दल। राहुल और कांग्रेस के मसले को लेकर ममता पर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है-‘गुड़ खाए, लेकिन गुलगुले से परहेज’।

शंकर जालान
कहावत प्रचलित है-‘गुड़ खाए, लेकिन गुलगुले से परहेज’। राहुल गांधी और राष्ट्रीय कांग्रेस को लेकर इन दिनों कुछ ऐसा ही चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दिए गए बयान के बाद राहुल गांधी की लोक सभा की सदस्यता रद्द कर दी गई, इसे लेकर कांग्रेस समेत तमाम गैर-भाजपाई दल भले ही मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए राहुल के साथ खड़े दिख रहे हों, बावजूद इसके ज्यादातर क्षेत्रीय दलों विशेषकर तृणमूल कांग्रेस को आगामी लोक सभा चुनाव में कांग्रेस का साथ मंजूर नहीं है।

ऐसे में लाख टके का सवाल है कि इस तरह के बिखराव के बीच क्या 2024 में भाजपा को परास्त किया जा सकेगा।
कांग्रेस को अलग रखकर गठबंधन की जो सुगबुगाहट शुरू हुई है, क्या वह साकार हो पाएगी? देश का अगला प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहीं अग्निकन्या के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी क्या सचमुच में ऐसा कर पाएंगी? राहुल का समर्थन, लेकिन कांग्रेस को दरकिनार कर तमाम राजनीतिक दल विशेषकर ममता अपनी राजनीति में सफल हो पाएंगी? कभी अकेले चुनाव लडऩे, अभी भाजपा और कांग्रेस से अलग मोर्चा बनाने जैसी घोषणाओं के पीछे आखिर, ममता की क्या मजबूरी है, या ममता बार-बार और इतनी जल्दी-जल्दी बयान क्यों पलट रही हैं।

इसे लेकर जहां राजनीति के पंडित माथापच्ची कर रहे हैं, वहीं भाजपा राहत की सांस ले रही है क्योंकि भाजपा के केंद्रीय नेताओं या कहें कि रणनीतिकारों को भली-भांति ज्ञात है कि विपक्ष विशेषकर ममता जितना रंग बदलेेंगी, भाजपा के लिए 2024 की राह उतनी ही सहज होगी। बताते चलें कि जिस मुद्दे पर राहुल को लोक सभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है, उसी तरह के मुद्दे को उछाल कर तृणमूल कांग्रेस अब प्रधानमंत्री मोदी को न केवल कठघरे में खड़ा करना चाहती है, बल्कि उनकी (प्रधानमंत्री) की सदस्यता रद्द करने की मांग भी कर रही है। तृणमूल का तर्क है कि जब प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक या हास्यास्पद शब्द बोलने पर राहुल को सजा सुनाई जा सकती है, तो फिर ममता बनर्जी के लिए ‘दीदी-ओ-दीदी’ जैसी व्यंग्यात्मक टिप्पणी के लिए प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को क्यूं नहीं ?

पच्चीस मार्च के पहले तक ममता कहती थीं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी ‘टीआरपी’ हैं, लेकिन अदालत ने जैसे ही राहुल गांधी खिलाफ फैसला सुनाया, ममता एकाएक राहुल के पक्ष में बोलने और केंद्र सरकार खासकर नरेन्द्र मोदी को घेरने लगीं। सवाल उठ रहा है कि ममता ने अचानक पलटी क्यों मारी? क्या सचमुच में ममता राहुल के साथ खड़ी हैं? अगर हां, तो फिर ममता को उस कांग्रेस से परहेज क्यों है, जिसने उन्हें पहली बार सांसद और केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर प्रदान किया था? या फिर क्या ममता राहुल के बहाने 2024 की गोटी सजाने में लगी हैं। जानकारों के एक पक्ष का मत है कि राहुल का मुद्दा उछाल कर ममता बताने की कोशिश कर रही हैं कि मोदी सरकार के इशारे पर विपक्षी दलों के नेताओं के साथ लगातार गलत हो रहा है। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि ममता के सामने फिलहाल विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनने का लक्ष्य नहीं है, बल्कि अपने घर यानी पश्चिम बंगाल को बचाना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

कहना गलत नहीं होगा कि अगले आम चुनाव में सूबे में तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत दांव पर होगी और इसकी वजह राज्य में भाजपा का बढ़ता जनाधार तो है ही, साथ ही कांग्रेस और वाम मोर्चा की बढ़ती लोकप्रियता भी है। सागरदिघी उपचुनाव में दोनों (कांग्रेस और वाम मोर्चा) ने तृणमूल कांग्रेस को पटखनी दी है, शायद इसीलिए ममता राहुल के साथ तो जरूर दिख रही हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ बिल्कुल नहीं। राहुल की संसद की सदस्यता रद्द किए जाने के फैसले के बाद विपक्ष के कई नेता राहुल गांधी के समर्थन में उतरे तो भाजपा के नेताओं ने कहा कि सब कुछ कानून के मुताबिक हुआ है। कहना गलत नहीं होगा कि ममता ने आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस को सिरे से खारिज करना शुरू कर दिया है।

ममता बनर्जी देश के कई नेताओं के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे को मजबूत बनाने के लिए काम कर रही हैं। इस क्रम में उन्होंने हाल में समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव से भी मुलाकात की थी। सपा प्रमुख ने आने वाले दिनों में विपक्षी गठबंधन के आकार लेने का भरोसा जताते हुए कहा कि 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ लड़ाई में क्षेत्रीय पार्टयिां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। हालांकि, इस प्रस्तावित विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस की भूमिका पर अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस को तय करना है कि वह कहां रहे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, और हम क्षेत्रीय दल। राहुल और कांग्रेस के मसले को लेकर ममता पर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है-‘गुड़ खाए, लेकिन गुलगुले से परहेज’।

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