गाद से कैसे पार होगा क्रूज
सुरेश भाई
हमारे देश में गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बहुत उत्सुक हैं।
गंगा की निर्मलता के साथ-साथ जल मार्ग के द्वारा देश-दुनिया के लोगों को सरल और सुगम यात्रा करवाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी सिलसिले में 13 जनवरी 2023 को प्रधानमंत्री जी ने वाराणसी से ‘गंगा विलास’ के नाम से चर्चित एक लग्जरी रिवर क्रूज की शुरु आत की है।
एमवी गंगा विलास के नाम से प्रसिद्ध यह जलयान अगले 15 दिनों में यानी 28 जनवरी तक बांग्लादेश से होकर गुजरने वाला है, लेकिन इससे पहले बिहार के छपरा में गंगा किनारे करने के दौरान यह गाद में फंस गया था। बताया जाता है कि कम पानी होने के कारण आगे नहीं बढ़ पाया। नतीजतन इस पर बैठे सभी यात्रियों को छोटी नाव से निकालकर किनारे लाया गया। इससे एक बड़ा संदेश सामने आ गया कि नदियों में गाद बड़ी मात्रा में भर रहा है। हिमालय से आने वाली सभी नदियों में दिनोंदिन गाद भरने से जलस्तर बहुत कम होता जा रहा है। विभिन्न आंकड़ों के आधार पर पता चलता है कि पिछले 40 वर्षो में 50 फीसद से अधिक जल राशि नदियों और उसकी सहायक जल धाराओं में कम हुई है। वर्तमान में सभी नदियों में प्रदूषण की सबसे बड़ी मार तो पड़ ही रही है और दूसरी तरफ बरसात के समय हिमालय क्षेत्र से आ रही नदियों में बड़ी मात्रा में गाद मैदानी क्षेत्रों से होते हुए गंगासागर तक पहुंच रही है।
सागर के किनारों की बस्तियों में भी संकट पैदा हो रहा है। इसके कारण रेगिस्तानी ऊंट की पीठ के जैसे दृश्य नदियों के बीच में दिखाई दे रहे हैं। जहां गाद के छोटे-बड़े पहाड़ उगकर निकल रहे हैं, जिससे जलस्तर तो नीचे चला गया और नदियों के बीच में ऊंचे-ऊंचे टीले जैसे खड़े हो रहे हैं। यह स्थिति फरक्का बैराज तक अधिक भयानक रूप धारण कर रही है। हिमालय क्षेत्र से आ रही अनेकों नदियों के उद्गम में पंचतारा संस्कृति के नाम पर पर्यटन, बहुमंजिला इमारतों का निर्माण, हिमालय की भूगॢभक संरचना को नजरअंदाज करते हुए सुरंग आधारित परियोजनाएं व चौड़ी सडक़ों के निर्माण से निकल रहे टनों मलबा को सीधे नदियों में उड़ेला जा रहा है, जिसके कारण बरसात के समय बाढ़ और भूस्खलन बढ़ता जा रहा है। इसके साथ ही हिमालय क्षेत्र में लगातार आ रहे छोटे-बड़े भूकंप से धरती पर दरारें पड़ गई है। बरसात के समय दरारों पर पानी भरने से कई स्थानों पर पहाड़ों से मलबा गिरने लगता है।
स्थिति तब और विकराल हो जाती है जब हजारों सालों से ग्लेशियर के मलबे के ऊपर बसी हुई बस्तियों के नीचे सुरंगों का निर्माण किया जाता है और वहां पर्यटन के नाम पर चौड़ी सडक़ें बनने लग जाती है, जिसके चलते निर्माण कार्यों से निकलने वाला अधिकांश मलबा नदियों में फेंका जा रहा है। फलस्वरूप हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक नदियों के बीच में गाद ही गाद नजर आने लग गई है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हिमालय पर्वत अपने गुरु त्वाकषर्ण केंद्र से हट रहा है। ऐसे संवेदनशील हिमालय में यदि बड़े-बड़े निर्माण कार्यों की योजनाएं बनती रहेगी तो निश्चित ही हिमालय पर कुछ बची हुई मिट्टी, पत्थर वहां पर बसी हुई आबादी की बर्बादी का कारण तो बनेगी ही साथ ही नदियों की सभ्यता भी लोगों के सामने ध्वस्त होती नजर आएगी, जबकि गंगा विलास की शुरुआत करते समय प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा है कि यह नदियों की सभ्यता को दिखाने का काम करेगा।
बिल्कुल इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि यदि नदियों में गाद भरेगी तो दुनिया का सबसे बड़ा जलयान सूखती नदियों में कैसे तैर पाएगा। क्योंकि नदियों से गाद हटाने और इसको नियंत्रण करने के उपाय पर विचार ही नहीं हो रहा है। उत्तराखंड एक उदाहरण है कि उत्तरकाशी में 2010-12 और इसके बाद 2013 में केदारनाथ आपदा, 2021 में बद्रीनाथ के पास ऋषि गंगा में आई भयानक आपदा, वर्तमान में जनवरी 2023 में जोशीमठ भू-धंसाव, लगातार हिमस्खलन और ग्लेशियर पिघलने की घटनाओं से एक तरफ जानमाल को नुकसान हो रहा है और दूसरी तरफ पहाड़ की मिट्टी बेतरतीब नदियों के बहाव के साथ मैदानी क्षेत्रों में बह कर आ रही है, जिसके कारण नदियों की सभ्यता की खूबसूरती बिगड़ रही है।
उत्तराखंड में चार धाम सडक़ चौड़ीकरण और इसके निर्माण के लिए अंधाधुंध वनों की कटाई की जा रही है, जिसका मलबा नदियों में गिर रहा है। इसके नियंत्रण के लिए सर्वोच्च अदालत ने एक विशेषज्ञ समिति का निर्माण भी किया था, लेकिन खेद है कि उन्होंने नदियों में मलबा रोकने के लिए अनेकों सुझाव ऊपरी अदालत के सामने रखे थे। उस समिति के अध्यक्ष समेत तमाम सदस्यों को हटाकर अब ऐसी समिति बना दी है जिससे हिमालय की नदियों और पर्वतों की संवेदनशीलता को बचाए रखना बड़ी चुनौती है। ऐसा लगता है कि नदियों में गाद बढऩे के साथ-साथ नदियों की जल राशि भी निरंतर कम होती जाएगी, जिससे हिमालय से लेकर मैदानी क्षेत्रों में पानी की समस्या बढ़ेगी, कृषि सबसे अधिक प्रभावित होगी, प्रदूषण चारों तरफ बीमारी के रूप में फैलेगा, जिसको हम जलवायु परिवर्तन के रूप में देख रहे हैं, लेकिन मनुष्यों के द्वारा किए गए इन विकास कार्यों की समीक्षा जब तक नहीं होती है तब तक जलमार्ग पर बिना बाधा के क्रूज को पार करवाने में चुनौतियां हो सकती है।