खतरे में जैव विविधता
वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि हम उस बिंदु का पूर्वानुमान तो नहीं लगा सकते, जहां पहुंचने के बाद पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह नष्ट हो जाएगा, लेकिन जैव विविधता को खत्म होने से नहीं रोका गया, तो ऐसा होना तय है।
जैव विविधता खतरे में है, यह कोई नई जानकारी नहीं है। लेकिन इस बारे में आने वाली हर नई जानकारी चिंता बढ़ाती है, तो इसलिए कि इसका असर मनुष्य पर भी होना तय है। पूरी दुनिया एक साझा परिवास है, जिसमें जैविक संतुलन बिगडऩे का मतलब सबके लिए खतरा बढऩा है। अब वैज्ञानिकों ने कहा है कि जानवरों की जो प्रजातियां जंगलों में खत्म हो चुकी हैं, उनका चिडिय़ाघरों में रह रहे जीवों के जरिए उबरना बेहद कठिन है। एक नए अध्ययन के बाद विशेषज्ञों ने कहा कि प्राकृतिक आवासों में जिन जानवरों की संख्या दस से कम हो चुकी है, उनकी आबादी बढ़ाने के लिए अक्सर चिडिय़ाघरों से जीवों को जंगलों में छोड़ा जाता है। लेकिन इससे आबादी बढऩा मुश्किल है। कारण यह है कि जिन कारणों से जानवरों की संख्या घटी थी, वे ज्यों के त्यों बने हुए हैं। जिन खतरों ने इन जानवरों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचाया है, वे जंगल में दोबारा भेजे गए प्राणियों के सामने भी बने होते हैं। इनमें जैविक विविधता की कमी और अवैध शिकार आदि शामिल हैं।
हालांकि वैज्ञानिक संरक्षण की कोशिशों को भी जरूरी मानते हैं और अध्ययनकर्ताओं ने स्वीकार किया है कि अगर ऐसी कोशिशें ना की गई होतीं, तो ये जानवर बहुत पहले विलुप्त हो चुके होते। 1950 से अब तक लगभग 100 प्रजातियां ऐसी हैं, जो विलुप्त हो चुकी हैं। इसकी मुख्य वजहों में अवैध शिकार, वनों का कटाव, घटते कुदरती रहवास आदि खतरे शामिल हैं। वैज्ञानिक अब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस वक्त जिस तेजी से प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, वह पिछली किसी भी ऐसी घटना से ज्यादा तेज है। उन्होंने कहा है- “हम उस बिंदु का पूर्वानुमान तो नहीं लगा सकते, जहां पहुंचने के बाद पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह नष्ट हो जाएगा, लेकिन जैव विविधता को खत्म होने से नहीं रोका गया, तो ऐसा होना तय है।” जाहिर है, इससे ज्यादा दो-टूक चेतावनी नहीं दी जा सकती। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी खबरों को ना तो मीडिया में जगह मिलती है, ना उस पर राजनीतिक दायरे में चर्चा होती है। नतीजतन, खतरा बढ़ता ही जा रहा है।